जीवन की कठिन दोपहरी में
मेरे पथ की छाया तुम होगी
फिर छाँव-गाँव मिल जाएंगे
वो छाँव-गाँव भी तुम होगी
मंज़िल है मुझसे दूर बहुत
और प्यासा सा चातक मन
पथ पे कहीं जो नीर मिला
तो नदी किनारा तुम होगी
आंखों ने सपने कई देखे
सपने सच तो नहीं होते
भोर स्वपन ही सच होगा
भोर स्वपन वो तुम होगी
- अशोक जमनानी