कभी सुना है गीत श्रमिक का जो वो रातों में गाता है
सूरज संग जल-जल जो पाया गाकर उसे भुलाता है
कभी सुना है गीत पथिक का राह में जो दोहराता है
मंज़िल देती आवाज़ें ; अक्सर छूट गया भी बुलाता है
कभी सुना है गीत विरह का जो आंसू बन जाता है
शब्द न कोई सुर संगी पर सब कुछ वो कह जाता है
कभी सुना है गीत हृदय का जो धड़कन बन जाता है
दिल में मोहब्बत होती है तो मर के अमर हो जाता है
- अशोक जमनानी