सूखे पत्तों को जब आकर हवा उड़ाती है
शाख के पत्तों की भी रूह कांप जाती है
दरख़्त अपने ही पत्तों का हो नहीं पाता
चिड़िया पागल है वहां घोंसला बनाती है
धूप पेड़ों के सिर जमाती जब डेरा आकर
ये छांव पेड़ों तले तब बस्तियां बसाती है
दरख़्त जो भी खास थे वो बन गये खुदा
आम लकड़ियां तो चूल्हों को ही जलातीं हैं
दरख़्त मिट्टी से रिश्ता समझ नहीं पाता
साथ रहती है फिर ये साथ छोड़ जाती है
- अशोक जमनानी
शाख के पत्तों की भी रूह कांप जाती है
दरख़्त अपने ही पत्तों का हो नहीं पाता
चिड़िया पागल है वहां घोंसला बनाती है
धूप पेड़ों के सिर जमाती जब डेरा आकर
ये छांव पेड़ों तले तब बस्तियां बसाती है
दरख़्त जो भी खास थे वो बन गये खुदा
आम लकड़ियां तो चूल्हों को ही जलातीं हैं
दरख़्त मिट्टी से रिश्ता समझ नहीं पाता
साथ रहती है फिर ये साथ छोड़ जाती है
- अशोक जमनानी