Home » कविता » दिवाली » दीपावली » Geet » poems on deepawali » Story » दीपावली: दीप-द्वितीय दीपावली: दीप-द्वितीय रौशन खुशियों का आलम हो घर मेरे घर तेरे भीआंगन के दीपक से हारें नभ के गहरे अंधेरे भी इक आंगन के उजाले में कहां बात निराली होती हैजब हर आंगन में दीप जलें तब रात दीवाली होती है - अशोक जमनानी Share: Facebook Twitter Google+ StumbleUpon Digg Delicious LinkedIn Reddit Technorati