शब्द से होकर विलग
धारण कैसे कर सकता हूँ
मौन
वहां
जहां
मिट्टी भी
शीश पर धर
अग्नि-शिखा
करती है संघर्ष
अंधकार से।
मैं
दीपमाला को
नहीं मानता केवल
उत्सव प्रतीक
वरन
वरन
अंधकार के विरूद्ध
अकिंचन का समूह
भर देता है मुझमें
आलोकित गर्व
दीपावली मेरे लिए नहीं है
पुरातन परंपरा
लगती है सदा से मुझे यह
आलोकित सर्व का
उज्जवल
सनातन गर्व
और
और
यही है शायद
अकिंचन का
पुरातन क्रांति-पर्व
- अशोक जमनानी