ध्वांत से न क्लांत हों
धारण करें शुभ पंथ का
ज्योतिर्मयी-ज्योतिर्मयी
वह चेतना ही लक्ष्य हो
अनंत वह प्रकाश हो
उर्ध्व का उल्लास हो
अनहद हो अंतहीन तब
अनहद हो अंतहीन तब
वह समर्पित रास हो
जब समग्र शांत हो
मुक्त का वरण करें
चिर आदि-अंतहीन
वह चेतना ही लक्ष्य हो
सहस्त्र सूर्य जल उठें
न घट कोई अपूर्ण हो
कल्याण मंत्र सिद्ध हो
प्रकाश-पर्व पूर्ण हो
अंत तिमिर रात्रि का
अंत तिमिर रात्रि का
नव मंगला आरात्रिका
मांगल्यमयी सर्व की
वह चेतना ही लक्ष्य हो
- अशोक जमनानी