
यादों का उजाला
रहता हैं
मेरे घर के रोशनदान में
उसे छूकर रोशनी
पहुंचती है जब दिल में
तब धड़कन लेकर
वो धूप
वो चांदनी
करती है रक्स
जिस्म की महफिल में
फिर रूह भी
नहाती है
उस धूप में
उस चांदनी में
और फैलती है
वो स्याही लेकर
जो रक्खी है
शायद हर इक कोने में
कागजों पर फैली स्याही को
कह सकते हो - शब्द
लेकिन मैं जानता हूं
नहीं है ये शब्द
ये तो है बस
यादों का उजाला
जो रहता है
मेरे घर के रोशनदान में