कविता :-कितना अँधेरा है
मैं जानता हूँ
मुझे देखकर लोग
मुस्कराते हैं
तुम्हें देखकर भी लोग
मुस्कराते होंगे
पर कितना अँधेरा है
इन मुस्कराहटों के पीछे
जिसे पाकर खुश हैं वो
और न जाने क्यों
किसी ने नहीं लिया
कुछ भी
हमारे बेशकीमती
उजाले से ......
- अशोक जमनानी
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