Home » कविता » Geet » Story » अमृत अमृत कुछ लम्हों को रुखसत नहीं किया बस रख लिया अपने पास उनको फिर पीता रहा घूँट घूँट जिनको अमृत की तरह अमृत की तरह लेकिन न जाने क्यों पीकर अमृत मैं मर जाता हूँ हर एक घूँट के बाद Share: Facebook Twitter Google+ StumbleUpon Digg Delicious LinkedIn Reddit Technorati