खम्मा लेखन के लिए राजस्थान यात्रा
राजस्थान से बाहर पूरे देश में कालबेलिया का अर्थ होता है खूबसूरत काले परिधान में सजी हुई एक ऐसी लोक नर्तकी जिसके नृत्य ने देश-विदेश में भारतीय लोक नृत्य को एक नयी पहचान दी है. बीन की धुन पर थिरकते पाँव जब गति पकड़ते है और नर्तकी गोल चक्कर लगाना आरम्भ करती है तो परिधान का वैशिष्ट्य और नृत्य की गति दर्शकों की सुध-बुध हर लेते हैं।
राजस्थान से बाहर पूरे देश में कालबेलिया का अर्थ होता है खूबसूरत काले परिधान में सजी हुई एक ऐसी लोक नर्तकी जिसके नृत्य ने देश-विदेश में भारतीय लोक नृत्य को एक नयी पहचान दी है. बीन की धुन पर थिरकते पाँव जब गति पकड़ते है और नर्तकी गोल चक्कर लगाना आरम्भ करती है तो परिधान का वैशिष्ट्य और नृत्य की गति दर्शकों की सुध-बुध हर लेते हैं।
लेकिन
कालबेलिया की यह पहचान तो
केवल मंचों
पर है
. इस घुमंतू
जाति का
सारा आकर्षण
एक दूसरी
ही दास्ताँ
सुनाता है
जब हम
इनके डेरों
से रूबरू
होते हैं.
कभी सांप
का खेल
दिखाकर अपना
जीवन यापन
करने वाली
यह जाति
अपने जीवन
के नए
संकट के
सामने जाकर
तब खड़ी
हुई जब
सरकार ने
सांप पकड़ने
पर रोक
लगा दी
. संकट वैसे
भी इनके
जीवन में
कम नहीं
थे लेकिन
अचानक आये
रोज़ी रोटी
के संकट
ने इनके
सामने कुछ
नए समाधान
रखे . बहुत
छोटे वर्ग
ने स्वीकार
किया की
अब सांप
के स्थान
पर उनकी
महिलाएं नृत्य
करें .बहुसंख्य
लोगों ने
तो इसका
पुरजोर विरोध
किया और
आज भी
जो महिलाएं
नृत्य करती
हैं उन्हें
कालबेलिया समाज सम्मान नहीं देता
. इस घुमंतू
जाति के
पास संस्कृति
के कई
सूत्र हैं
उन्हें समझने
के लिए
ही मैं
उनके डेरे
पर गया
. गाँव से
लगभग बाहर
उनके डेरे
पर विपन्नता
का ऐसा
डेरा था
जिसे देखकर
देश के
सारे विकास
पर शर्म
आती है.
एक छोटा सा बच्चा बाजरे की रोटी का एक टुकड़ा थामे चुपचाप बैठा था उस कड़क टुकड़े को चबाने में किसी आभिजात्य की तो बत्तीसी ही बाहर आ सकती थी लेकिन वो बच्चा कोशिश कर रहा था उसी टुकड़े में सब स्वाद पाने की. डेरे की बुजुर्ग महिला उसी समय गाँव के कई घरों से कुछ मांगकर लौटी थी और उसके बड़े से कटोरे में जो था शायद वही उनके परिवार का दोपहर का भोजन बनने वाला था . मैंने उनसे बात करना शुरू की तो वो मेरे बैठने के लिए खाट ले आये मेरे बहुत कहने पर भी वो मेरे साथ नहीं बैठे बल्कि नीचे ज़मीन पर बैठ गए . न जाने कितनी सदियों से हमने उन्हें यकीन जो दिला दिया है कि वो हमसे बहुत छोटे हैं शायद इसीलिए वो आज भी अपने ही घर में हमारे साथ बैठने का साहस नहीं जुटा पाते.

वो मेरे सवालों का जवाब देते रहे फिर मेरे कहने पर बीन पर कुछ धुनें भी सुनाईं . मैंने परिवार के मुखिया से पूछा 'अब तुम्हारे पास कितने सांप हैं ?' उसने कहा ' एक भी नहीं ' चलते वक़्त उसने कहा ' साहब सरकार जानवरों की इतनी चिंता करती है लेकिन इंसानों की चिंता क्यों नहीं करती ?' मैंने कोई जवाब नहीं दिया मेरे पास जवाब था भी नहीं . जवाब तो सरकार को देना है। रही बात कालबेलिया के सवाल की तो उसका जवाब कोई नहीं देगा वो तो आम आदमी से भी ज्यादा गिरी हुई हालत में हैं .सच तो ये है कि कालबेलिया औरत अपने समाज से बहिष्कृत होने का भय त्याग कर , अपने बच्चे के हाथ में रोटी का एक नर्म टुकड़ा रखने के लिए किसी मंच या मरूभूमि पर पूरी शिद्दत के साथ नाचते हुए घूम रही होगी .. गोल-गोल .... गोल-गोल .... गोल-गोल ....हम चुपचाप देखेंगे।
एक छोटा सा बच्चा बाजरे की रोटी का एक टुकड़ा थामे चुपचाप बैठा था उस कड़क टुकड़े को चबाने में किसी आभिजात्य की तो बत्तीसी ही बाहर आ सकती थी लेकिन वो बच्चा कोशिश कर रहा था उसी टुकड़े में सब स्वाद पाने की. डेरे की बुजुर्ग महिला उसी समय गाँव के कई घरों से कुछ मांगकर लौटी थी और उसके बड़े से कटोरे में जो था शायद वही उनके परिवार का दोपहर का भोजन बनने वाला था . मैंने उनसे बात करना शुरू की तो वो मेरे बैठने के लिए खाट ले आये मेरे बहुत कहने पर भी वो मेरे साथ नहीं बैठे बल्कि नीचे ज़मीन पर बैठ गए . न जाने कितनी सदियों से हमने उन्हें यकीन जो दिला दिया है कि वो हमसे बहुत छोटे हैं शायद इसीलिए वो आज भी अपने ही घर में हमारे साथ बैठने का साहस नहीं जुटा पाते.
वो मेरे सवालों का जवाब देते रहे फिर मेरे कहने पर बीन पर कुछ धुनें भी सुनाईं . मैंने परिवार के मुखिया से पूछा 'अब तुम्हारे पास कितने सांप हैं ?' उसने कहा ' एक भी नहीं ' चलते वक़्त उसने कहा ' साहब सरकार जानवरों की इतनी चिंता करती है लेकिन इंसानों की चिंता क्यों नहीं करती ?' मैंने कोई जवाब नहीं दिया मेरे पास जवाब था भी नहीं . जवाब तो सरकार को देना है। रही बात कालबेलिया के सवाल की तो उसका जवाब कोई नहीं देगा वो तो आम आदमी से भी ज्यादा गिरी हुई हालत में हैं .सच तो ये है कि कालबेलिया औरत अपने समाज से बहिष्कृत होने का भय त्याग कर , अपने बच्चे के हाथ में रोटी का एक नर्म टुकड़ा रखने के लिए किसी मंच या मरूभूमि पर पूरी शिद्दत के साथ नाचते हुए घूम रही होगी .. गोल-गोल .... गोल-गोल .... गोल-गोल ....हम चुपचाप देखेंगे।
- अशोक जमनानी