राजस्थान-यात्रा-१६-देगराय-
राजस्थान
का विविध रंगी लोक जीवन अपने वैविध्य के सौंदर्य से किसी का भी मन मोह
सकता है और जब जीवन के हर क्षेत्र में रंगों का वैविध्य हो तो भला आस्था का
क्षेत्र अछूता कैसे रह सकता है. शायद इसीलिए राजस्थान में अनेक लोक
देवताओं और लोक देवियों की अमूल्य उपस्थिति जन-जीवन से अभिन्न जुड़ाव रखती
है रामदेव,गोगाजी,पाबूजी,भैरूंजी,देवनारायण,हड़बूजी,मल्लिनाथ,तेजाजी ,
कल्लाजी,मेहाजी जैसे अनेक लोक देवता राजस्थानी जन मानस को गहरे तक प्रभावित
करते हैं.और उतनी ही महत्वपूर्ण है लोक देवियों की उपस्थिति . करणी
माता,ऊंठाला माता,आवरी माता,हिंगलाज माता,आवड़ माता,इडाणा माता और आई माता
जैसे विश्वास के अनेक सोपान हैं जहां आस्था निरंतर दीप प्रज्जवलित कर
श्रद्धा को जन-जन में जीवंत बनाये रखती है. इसी परंपरा का एक जागृत
शक्ति-पुंज है - देगराय . देगराय आवड़ माता का ही एक रूप है कहते हैं जब
सिंध के शासक उमर सूमरा ने आवड़ माता से विवाह का प्रस्ताव रखा तो देवी ने
उसका वध करके जैसलमेर की ओर प्रस्थान किया उस शक्ति पुंज ने एक स्थान पर
भैंसे के सिर को देग बनाकर उसमे अपनी चुनरी रंगी तब से उनका एक नाम देगराय
भी हुआ. भाटी राजवंश पर आवड़ माता की विशेष कृपा रही और भाटी राजवंश के ही
जैसलमेर से बाड़मेर जाने के रास्ते में ही देवीकोट से कुछ दूरी पर है देगराय
का प्रकृति के सानिध्य में बसा एक खूबसूरत सा मंदिर। किसी भी स्थान
के लोक देवी-देवता इसलिए बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये अपने दौर के वो
नायक हैं जिन्होंने जनमानस के लिए संघर्ष किया और शुभ की स्थापना का साहस
दिखाया आप पूरे भारत में कहीं भी चले जाइए लोक देवता हर जगह होंगे और साथ
ही होंगी बुराई के विरुद्ध उनके संघर्ष की अनेक कहानियां . कालांतर में
जनमानस उन्हें देवी-देवता बनाकर पूजता भी इसीलिए है क्योंकि वो भी सदैव शुभ
और सत्य की सत्ता का आग्रही है. दूसरी बात जो बेहद महत्वपूर्ण है वो है
लोक देवी-देवताओं का प्रकृति से अमिट जुड़ाव अधिकांश लोक देवी-देवताओं का
किसी वृक्ष से जोड़ा जाना भी शायद जन-जन में प्रकृति से जुड़ाव की भावना का
संचार करने का कोई भारतीय विचार ही रहा होगा. देगराय के मंदिर में मुझे
सबसे अधिक आकर्षित किया वहां की शांति ने. साथ ही मंदिर के पीछे एक झील भी
थी जिसे देखकर तो मैं भूल ही गया कि मैं मरुभूमि का यात्री हूँ . मेरे
साथियों ने कहा कि श्रद्धा सच्ची हो तो देवी के साक्षात दर्शन होते हैं .
मुझे लगा शायद इस जन्म में तो मैं कभी इतनी श्रद्धा जागृत कर ही नहीं
पाऊंगा. फिर मैंने सोचा क्या कभी ये भोला-भाला आम आदमी अपने संघर्ष में
इतना वक़्त निकाल पायेगा की श्रद्धा को सत्य के उत्कर्ष पर ले जा सके ?
क्या उसे कभी भी देवी के साक्षात् दर्शन नहीं होंगे ?? तभी मेरे साथी रतन
सिंह ने कहा 'आप सगुन चिड़ी देखना चाहते थे न वो देखिये वो रही' मैंने उन
छोटी-छोटी खूबसूरत चिड़ियों को देखा जिन्हें राजस्थानी जन मानस बहुत शुभ
मानता है. मेरे साथ साथ कुछ देहाती लोग भी उन्हें देख रहे थे ... साक्षात्.... और आप जानते हैं न कि सगुन चिड़ी आवड़ माता का ही स्वरूप है ....
लोग ऐसा मानते हैं और उन्हें देखते हैं - साक्षात् बिना किसी ऐसे
प्रमाण-पत्र के जो उनकी श्रद्धा को सच्चा सिद्ध कर सके. लोक देवी-देवता लोक
से मिलने के लिए कुछ भी कर सकते हैं छोटी-सी चिड़िया भी बन सकते हैं . इसीलिये वो
देवता हैं अगर वो ऐसा नहीं करते तो उनकी उपाधि देवता नहीं होती नेता होती .- अशोक जमनानी