रामलीला
नवरात्रि का आरम्भ हो चुका है और साथ ही शहर में एक सदी से भी ज्यादा पुरानी रामलीला भी वातावरण में आस्था की उर्जा प्रवाहित कर रही है। आज कुछ देर के लिए रामलीला देखने पहुंचा , भगवान् राम वन में हैं और भरत अयोध्या लौट गए हैं। मैथिली शरण गुप्त ने राम के वन-गमन को सत्ता के स्थान पर आम आदमी से जुड़ाव की कोशिश मानते हुए साकेत में बहुत सुन्दर पंक्तियाँ लिखीं हैं ...
प्रस्थान वन की ओर
या लोक मन की ओर
होकर न धन की ओर
हैं राम जन की ओर
राम के वन-गमन के कारण ही भारतीय समाज आज भी कैकेयी को माफ़ नहीं कर पाया लेकिन आज हर ओर स्वार्थ की ऐसी सड़ांध है कि कैकयी का स्वार्थ तो बहुत छोटा लगता है और जहाँ तक सियासत की बात है तो सियासत में अब एक कैकेयी नहीं है वरन पूरी की पूरी सियासत ही कैकेयी बन चुकी है और हर एक राम को स्थायी रूप से वन भेज दिया गया है। हाँ , कैकेयी का दूसरा वरदान क्या होगा इस पर मैंने कुछ पंक्तियाँ लिखीं हैं .
इस दौर में सियासत कैकेयी
भरत पे भरोसा कर न सकी
राम के लिए वनवास माँगा
और दी मंथरा को राज-गद्दी
- अशोक जमनानी
- चित्र पिछले वर्ष की रामलीला के पात्रों के साथ