Home » अशोक जमनानी » कविता » ASHOK JAMNANI » डब्बा डब्बा डब्बा छोटा-सा शिवांश सर पर घड़ी दो घड़ी एक खाली डब्बा साध कर सोचता है उसने कुछ कमाल कर दिया और मुल्क मेरा साधता है पांच -पांच साल तक डब्बे कई बेकार और सोचता है उसने कुछ कमाल कर दिया - अशोक जमनानी Share: Facebook Twitter Google+ StumbleUpon Digg Delicious LinkedIn Reddit Technorati