नि:शब्द
शब्द-पंथ कर तिरोहित
नि:शब्द रहने दो मुझे
मौन के आलोक में
संवाद का सृजन करूँ
शैथिल्य है या है पलायन
या पराजय जान लो
चिर-दग्ध भाव का विसर्जन
या इसे तुम मान लो
शब्दों की सामर्थ्य जब
अर्थ-हीन हो गयी
नि:संग मौन आज मुझसे
देह का तुम दान लो .
आकार को कर अब प्रवाहित
निराकार दो मुझे
मैं प्रलय के काल में
सृष्टि-स्वप्न को धरूँ .
- अशोक जमनानी