सुर-बहार और पुष्पराज कोष्ठी
प्रगति के इस दौर ने संस्कृति को अपूरणीय क्षति पहुंचाई है। देखते ही देखते न जाने कितने भारतीय वाद्य न जाने कहाँ खो गए। ऐसा ही एक वाद्य है - सुर-बहार। सितार और वीणा का मिला-जुला रूप और आज भी यह वाद्य अस्तित्व में है तो उसका कारण है पुष्पराज कोष्ठी जी का इस वाद्य के प्रति समर्पण। बहुत ही सरल और सच्चे इस कलाकार से मिलना एक सुखद अनुभूति ही थी। काश हर लुप्त होते वाद्य को कोई पुष्पराज कोष्ठी मिल जाता .....
- अशोक जमनानी