अभी लगेगा बहुत वक़्त
सूखने में ये रक्त
रक्त
जिसे बहाया था
तुम्हारी और मेरी
तलवारों ने
रक्त
जो बहा था
तुम्हारी और मेरी
कटी हुई गर्दनों से
रक्त
जिसे देखकर
बेहोश हो गयीं थीं माँएं
बिलख उठीं थीं
सिर पर पल्लू रखना भूलकर
घरों की चारदीवारियों में क़ैद
बेबस औरतें
और न जाने कितनी घुटन हुई थी
उन्हें भी
जिनके सपनों में थे हम
वो तो रो भी नहीं सकतीं थीं
और बूढ़े होते पिता
बस ज़रा से छोटे-बड़े भाई
और ... और दोस्त
जो लगते थे अपने बदन का हिस्सा
कितने खामोश थे
वो सब
लगा जैसे मर गयीं थीं
उन सबकी आवाज़ें
और हाँ बच्चे भी तो थे
जो सहम गए थे
बहुत-बहुत
देखकर रक्त
रक्त
जिसे बहाया था
तुम्हारी और मेरी
तलवारों ने
जो बहा था
तुम्हारी और मेरी
कटी हुई गर्दनों से
रक्त
जो बहते ही
लगता है
सूखा-सूखा
लेकिन
जिसे लगता है
बहुत बहुत वक़्त
सूखने में ......
- अशोक जमनानी