वो बच्चे
सोये नहीं रात भर
सोते तो हैं वो बच्चे
खिलौने होते हैं
जिनके ख़्वाबों में
कुछ निवाले
पाने की उम्मीद
ख़्वाब बनने से
इंकार करती है अक्सर
पर किसी सुबह
मिले हुए चंद खैराती निवालों को
ठीक से देख भी नहीं पातीं आँखें
पेट तक पहुंचाने की हड़बड़ी में
कुछ निवाले
पाने की उम्मीद
ख़्वाब बनने से
इंकार करती है अक्सर
पर किसी सुबह
मिले हुए चंद खैराती निवालों को
ठीक से देख भी नहीं पातीं आँखें
पेट तक पहुंचाने की हड़बड़ी में
फ़िर
सरकारें बांटती हैं मुआवज़ा
सड़कें देखतीं हैं तमाशा
ख़बरची बटोरते हैं बिकाऊ माल
आह भरते हैं
ख़्वाब देखने वाले बच्चों के माँ-बाप
हम परोसते हैं कविताएँ
पर उस वक़्त
भूख नहीं रहती बाकी
तो सो रहे होते हैं
हमेशा के लिए
बेजान खिलौनों की तरह
वो ...... बच्चे ........
- अशोक जमनानी