नर्मदा शब्द की व्युत्पत्ति है नर्म + दा ' नर्म ददाति इति नर्मदा ' .
जो नर्म अर्थात सुख देती है वही नर्मदा है। नर्मदा का प्रवाह जैसे जैसे आगे बढ़ता है वैसे वैसे उसका विस्तार भी बढ़ता जाता है। अमरकंटक की शिशु नर्मदा मझियाखार से आगे बढ़ती है तो चंदनघाट तक आते आते इसका विस्तार भी जैसे दृष्टि के लिए सुख का अद्भुत विस्तार बन जाता है। चन्दनघाट नर्मदा के उत्तर तट पर है और दक्षिण तट पर शुकलपुरा गाँव है। पास ही चिकरार संगम भी है लेकिन इस छोटे से स्थान पर दोनों तटों के घाट ऐसे लगते हैं जैसे इनका निर्माण वशिष्ठ संहिता को सार्थक करने के लिए हुआ हो जो कहती है …
यतो ददासि नो नर्म चक्षुषात्वं विपश्यता।
ततो भविष्यसे देवी विख्याता भुवि नर्मदा।।
- अशोक जमनानी