यात्रा आगे बढ़ती है तो दक्षिण तट पर कुछ खंडहरों के साथ रामनगर रोक लेता है। इतिहास के साथ जीता हुआ एक छोटा सा कस्बा जो कभी गोंड राजाओं की राजधानी था। वैसे तो समूचे नर्मदा क्षेत्र का इतिहास विभिन्न राजवंशों से जुड़ता है परन्तु कलचुरि और गोंड राजवंश तो नर्मदा तट पर ही फले फूले। गोंड राजवंश के आरम्भ के सूत्र मध्यप्रदेश के बैतूल में खेड़ला तक जाते हैं। वहां तो नर्मदा नहीं है लेकिन गोंड राजवंश की शेष गौरव गाथाएं नर्मदा ही सुनाती है। हृदयशाह ने रामनगर को राजधानी बनाया और 1667 तक यहाँ कई महलों का निर्माण करवाया जो अब खंडहरों में तब्दील हो चुके हैं। नर्मदा को वरदान प्राप्त है कि कल्प के अंत में जब प्रलय होगा तब भी वह नष्ट नहीं होगी। साम्राज्य बनते हैं, मिटते हैं और नर्मदा इन बनते-बिगड़ते साम्राज्यों की मौन साक्षिणी है। मेरी नर्मदा पर लिखी एक लंबी कविता की आरम्भिक पंक्तियां हैं …
बहो निरंतर बहो नर्मदा कल्प नहीं बाधा प्रवाह में
सृष्टि के उत्थान पतन की चिर साक्षिणी शेष रहे
- अशोक जमनानी