बरगी बाँध से कुछ दूरी पर है तूनिया। मार्ग के सौंदर्य को निहारता हुआ आगे बढ़ रहा था तभी एक छोटे-से टीले पर बैठे अकारण बड़बड़ाते एक बूढ़े व्यक्ति की ओर ध्यान गया। पास जाकर देखा तो पाया कि उसकी हालत बेहद ख़राब थी। आँखों की रोशनी बहुत कम हो चुकी थी और ग़रीबी जो कुछ करती है वो सब उसके साथ हो रहा था । मैंने कुछ सहायता करनी चाही तो वो रो पड़ा। उसने बताया कि उसके बेटे शहर चले गए हैं। मैंने पूछा कि वो ख़ुद क्यों नहीं गया तो उसने बताया कि पास के गाँव में उसकी ज़मीन थी जो बाँध में डूब गयी। फिर उसने रोते-रोते बताया कि वो ज़मीन देखता है इसलिए अपने बेटों के पास नहीं जा रहा। मैंने आश्चर्य के साथ कहा कि ज़मीन कहाँ दिखायी देती है वहां तो पानी है। उसकी रोशनी खो चुकी आँखों में अचानक चमक उभरी उसने कहा " दिखायी देती है साहब , पानी के नीचे दिखायी देती है। " मैं क्या कहता ? उसकी आँखों की नमी थोड़ी- सी मेरे भीतर उतरी और मैं वहां से चला आया। आज यह पोस्ट लिखने से पहले अखबारों के कोनों में घुसा समाचार पढ़ कर आया हूँ कि सरकार ने भूमि अधिग्रहण का रास्ता साफ़ करने का अध्यादेश पास कर दिया है । संसद हंगामे की भेंट चढ़ गयी। जिस मुद्दे पर सबसे अधिक बहस होनी थी उस पर कोई बहस नहीं हुई। बुद्धिजीवी पीके की चिंता में दुबले हो रहे हैं, विपक्ष है नहीं और मीडिया के बारे में तो कुछ कहना भी बेमतलब हो चुका है। फिर भी मैं मूर्खों की तरह यह सब कुछ इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि घर लौटने के बाद भी विकास के महा प्रतीक बाँध की भेंट चढ़ चुकी एक बहुत बूढ़े की ज़मीन की दास्तां याद आती है। और याद आतीं हैं वे आँखें जिनमें रोशनी नहीं है पर उन्हें विकास के नाम पर डूबी अपनी ज़मीन दिखायी देती है, पानी के नीचे दिखायी देती है …… साहब !! - अशोक जमनानी