गुरु नानकदेव साहिब ने मानवता के कल्याण के लिए चार यात्राएं की जिन्हें चार उदासियों के नाम से जाना जाता है। सम्पूर्ण भारत के साथ अनेक देशों में गई इन यात्राओं का नर्मदा के साथ भी गहरा रिश्ता है ।ओंकारेश्वर से जबलपुर तक की यात्रा में वे नर्मदा के साथ चले। जबलपुर उनकी यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था। ज्ञान सिंह जी ने अपनी कविता में उनकी इस यात्रा का उल्लेख करते हुए लिखा है :
विंध्याचल को पावन करते नदी नर्मदा नाखी
जबलपुर लख चित्रकूट पिख रिखनपुर अभिलाखी।।
उनकी यात्रा की स्मृतियों को प्रणाम करता ग्वारीघाट के दक्षिण तट पर स्थित गुरुद्वारा अद्भुत है। यहाँ नर्मदा के परिक्रमावासियों के रुकने और भोजन की व्यवस्था बहुत भली लगी। रात हुई तो सामने के तट से आती आरती की आवाज़ और गुरबानी एकाकार होने लगीं और दोनों तटों के बीच बहती नर्मदा शायद अपने प्राक्तन यात्री को याद करके गुनगुना रही थी ....
आदि सचु जुगादि सचु
है भी सचु नानक होसी भी सचु ……
- अशोक जमनानी
विंध्याचल को पावन करते नदी नर्मदा नाखी
जबलपुर लख चित्रकूट पिख रिखनपुर अभिलाखी।।
उनकी यात्रा की स्मृतियों को प्रणाम करता ग्वारीघाट के दक्षिण तट पर स्थित गुरुद्वारा अद्भुत है। यहाँ नर्मदा के परिक्रमावासियों के रुकने और भोजन की व्यवस्था बहुत भली लगी। रात हुई तो सामने के तट से आती आरती की आवाज़ और गुरबानी एकाकार होने लगीं और दोनों तटों के बीच बहती नर्मदा शायद अपने प्राक्तन यात्री को याद करके गुनगुना रही थी ....
आदि सचु जुगादि सचु
है भी सचु नानक होसी भी सचु ……
- अशोक जमनानी